Sharp Earth देवनागरी

Sharp Earth is a new multi-script sans serif typeface spearheaded by Lucas Sharp and drawn in collaboration with a team of local experts from around the globe. The Sharp Earth family covers nearly every latinized language script on Earth in addition to Greek, Cyrillic, Arabic, Thai, Devanagari, and Japanese. As a contemporary expression of the international style, Sharp Earth is unified by a forward-looking aesthetic paradigm that has been drawn by and for a truly global design culture. Sharp Earth doesn’t neatly exist in any single sub-genre of the Sans Serif pantheon. Rather, it brings together core aspects of disparate sub-genres of sans serif type that share an emphasis on warmth, pragmatism, and utility.

Anagha Narayanan's endeavor with Sharp Earth Devanagari marks a significant milestone for Sharp Type's exploration into Indic scripts. The meticulous design process involved studying Devanagari signage, calligraphy manuals, and book covers, alongside a thorough examination of Sharp Earth Latin's stylistic nuances. The result is a craftily executed script that mirrors Sharp Earth’s overall warmth, approachability, and groundedness while translating certain key stylistic quirks—such as the Latin’s ink traps, top-heavy Grotesk proportions, and geometric terminals—into a new context. Crafted over a span of 2-½ years, Anagha began work at the start of 2021 while she was enrolled in a full-time type design course, making Sharp Earth Devanagari a testament to her growing erudition as a type designer.
Type Director: Lucas Sharp. Designer: Anagha Narayanan, Arya Purohit. Engineer: EK type
Version History
V.1 Feb 2024
Mixed Styles

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भूमी की ध्वनियाँ: रिमझिम, नभ,
प्राकृतिक सौंदर्य एवं सागर लहरें

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यद्यपि बायोम में वनस्पति और जन्तु दोनों को सम्मिलित करते हैं, तथापि हरे पौधों का ही ज्यादातर प्रभुत्व होता है क्योंकि इनका कुल जीवभार जन्तुओं की तुलना में बहुत अधिक होता है। विश्व में पाँच स्थलीय बायोम क्षेत्र पाते हैं। किसी रेगिस्तानी बायोम में पौधों में अक्सर मोटे पत्ते होते हैं (ताकि उनका जल अन्दर ही बंद रहे) और उनके ऊपर कांटे होते हैं (ताकि जानवर उन्हें आसानी से खा न पाएँ)। उनकी जड़ें भी रेत में उगने और पानी बटोरने के लिए विस्तृत होती हैं। बहुत से रेगिस्तानी पौधे धरती में ऐसे रसायन छोड़ते हैं जिनसे नए पौधे उनके समीप जड़ नहीं पकड़ पाते। इस से उस पूरे क्षेत्र में पड़ने वाला हल्का पानी या पिघलती बर्फ़ उन्ही को मिलती है।

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जानवर प्रमुख खतरे
के कगार पर Geodes are
Volcanic Rocks

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सवाना बायोम पार्कलैंड भूमि है जहाँ घासभूमियों के क्षेत्र में यत्र-तत्र कुछ वृक्ष रहते हैं। अफ्रीका, भारत, ब्राजील, पूर्वी आस्ट्रेलिया आदि इसके प्रमुख क्षेत्र हैं। पेड़-पौधे और जन्तुओं में सूखे को सहन करने की क्षमता होती है तथा वृक्षों में अधिक विविधता नहीं होती। यहाँ हाथी, दरियाई घोड़ा, जंगली भैंस, हिरण, जेब्रा, सिंह, चीता, तेंदुआ, गीदड़, घड़ियाल, हिप्पोपोटैमस, सांप, ऐमू व शुतुरमुर्ग मिलते है। यह प्रदेश ‘बड़े-बड़े शिकारों की भूमि’ के नाम से प्रसिद्ध है तथा विश्व प्रसिद्ध ‘जू’ है। मानवीय हस्तक्षेप के कारण इस क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।The Kathmandu Valley is the most developed and the largest urban agglomeration in Nepal with a population of about 5 million people. The urban agglomeration of Kathmandu Valley includes the cities of Kathmandu, Lalitpur, Bhaktapur, Changunarayan, Budhanilkantha, Tarakeshwar, Gokarneshwar, Suryabinayak, Tokha, Kirtipur, Madhyapur Thimi, and others. The majority of offices and headquarters are located in the valley, making it the economic hub of Nepal. It is popular with tourists for its unique architecture, and rich culture which includes the highest number of jatras (festivals) in Nepal. Kathmandu valley itself was referred to as "Nepal Proper" by British historians. As per the World Bank, the Kathmandu Valley was one of the fastest growing metropolitan areas in South Asia with 2.5 million population by 2010 and an annual growth rate of 4%.

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टुण्ड्रा वे मैदान हैं, जो हिम तथा बर्फ़ से ढँके रहते हैं तथा जहाँ मिट्टी वर्ष भर हिमशीतित रहती है। अत्यधिक कम तापमान और प्रकाश, इस बायोम में जीवन कोmसीमित करने वाले कारक हैं। 60°N अक्षांश से ऊपर के एशियाई, यूरोपीय व उत्तरी अमेरिकी भागों में वनस्पतियाँ अत्यन्त विरल हैं। वनस्पतियाँ इतनी बिखरी हुईं होती हैं कि इसे आर्कटिक मरूस्थल भी कहते हैं। यह बायोम वास्तव में वृक्षविहीन है। इसमें मुख्यतः लाइकेन, काई, हीथ, घास तथा बौने विलो-वृक्ष शामिल हैं। हिमशीतित मृदा का मौसमी पिघलाव भूमि की कुछ सेंटीमीटर गहराई तक कारगर रहता है, जिससे यहाँ केवल उथली जड़ों वाले पौधे ही उग सकते हैं। इस क्षेत्र में कैरीबू, आर्कटिक खरगोश, आर्कटिक लोमड़ी, रेंडियर, हिमउल्लू तथा प्रवासी पक्षी सामान्य रूप से पाए जाते हैं। सागरीय बायोम अन्य बायोम से इस दृष्टि से विशिष्ट है कि इसकी परिस्थितियाँ (जो प्रायः स्थलीय बायोम में नहीं होती हैं) पौधा और जन्तु दोनों समुदायों को समान रूप से प्रभावित करती हैं। महासागरीय जल का तापमान 0° से 30° सेण्टीग्रेट के बीच रहता है, जिसमें घुले लवण तत्वों की अधिकता होती है। इस बायोम में जीवन और आहार श्रृंखला का चक्र सूर्य का प्रकाश, जल, कार्बन डाई ऑक्साइड, ऑक्सीजन पर आधारित होता है क्योंकि नीचे जाने पर कम होता जाता है तथा २०० मीटर से अधिक समाप्त हो जाता है। ऊपरी प्रकाशित मण्डल सतह में ही प्राथमिक उत्पादक पौधे (हरे पौधे, फाइटोप्लैंकटन) प्रकाश संश्लेषण द्वारा आहार उत्पन्न करते हैं। वन बायोम दो भाग और छह उपविभागों में बांटा है: उष्णकटिबंधीय सदाहरित वन, मध्य अक्षांशीय सदाहरित वन, भूमध्यसागरीय वन, शंकुधारी वन [सदाहरित वन] तथा मध्य अक्षांशीय पर्णपाती बन, उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन या मानसूनी वन [पर्णपाती वन]। विषुवतीय प्रदेशों और उष्णकटिबंधीय तटीय प्रदेशों के भारी वर्षा और उच्च तापमान की दशाओं में सघन, ऊँचे कठोर लकड़ियों वाले यथा महोगनी, आबनूस, रोजवुड और डेल्टाई भागों में मैंग्रोव के वन पाये जाते हैं। उपोष्ण प्रदेशों में महाद्वीपों के पूर्वी तटीय भागों के ये वर्षा वन हैं। चौड़ी पत्तीवाले कठोर लकड़ी ओक, लॉरेल, मैग्नेलिया, यूकेलिप्टस आदि के वन यहाँ प्रमुख हैं। भूमध्य सागरीय प्रदेश ‘सिट्रस फलों’ के लिए प्रसिद्ध इनमें अंगूर, नींबू, नारंगी, शहतूत, नाशपाती व अनार प्रमुख है। शंकुधारी वन वृक्षों की पत्तियाँ मोटी आकार की होती हैं जो कम वाष्पोत्सर्जन करती है एवं शीत ऋतु में ठंड से बचाव में सहायक होती है। मध्य अक्षांशीय के बायोम क्षेत्र शीतल जलवायु के तटीय प्रदेशों में पाए जाते हैं। उष्ण कटिबंधीय सदाहरित वनों के बाद सर्वाधिक विविधता इन्हीं वन क्षेत्रों में पाई जाती है।

Earth Devanagari
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Earth Devanagari
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सवाना बायोम पार्कलैंड भूमि है जहाँ घासभूमियों के क्षेत्र में यत्र-तत्र कुछ वृक्ष रहते हैं। अफ्रीका, भारत, ब्राजील, पूर्वी

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शहरी समूह

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पवन दिशा सिद्धांतों के आधार पर
वायुमंडल में हवाएँ कैसे चलती हैं

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अपनी कल्पना और विश्लेषण की प्रतिभा से कहानियों में कौशल से ऋतुओं और भारतीय गांवों के मौसमों को जीवंत किया। “पूस की रात” और “इदगाह” जैसी कहानियों में उन्होंने कई ऋतुओं के साथ अपने किरदारों की भावनाएं समर्थन करने के लिए मौसम को पेंचा। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा।

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प्लेनट रेडियो इक्स्प्लोरर अन्वेषण Radioactive isotope of H2O

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गर्मी की ज्यादाती, मानसून की बौछारें, शरद ऋतु की सुर्खियां, और सर्दी की ठंडक - प्रेमचंद ने इन सभी को एक सुंदर चित्र परिचित किया गया। उनकी रचनाएंन केवल व्यक्तिगत अनुभवों की छवियों को सजीव करती हैं, बल्कि वे भारतीय मौसमों के साथ संबंधित विभिन्न पहलुओं को भी छूने का प्रयास करती हैं। “पत्तियाँ जल चुकी थीं। राख के नीचे कुछ-कुछ आग बाक़ी थी। जो हवा का झोंका आने पर ज़रा जाग उठती थी, पर एक लम्हा में फिर आँखें बंद कर लेती थी।” पूस की रात कहानी का नायक आर्थिक विषमताओं का शिकार ग्रामीण किसान हल्कू है जो यथा-सामर्थ्य कृषि कर्म करने के उपरांत भी ऋण और दीनता से मुक्ति नहीं पाता है। प्रचंड सूर्य को झुलसने वाली किरणों, मूसलाधार वृष्टि के आघातों तथा हाड़ कंपा देने वाली सर्दी को सहन करते हुए प्रात:काल से सायंकाल तक अपने खेतों में काम करता है किंतु भरपेट भोजन उसे कभी प्राप्त नहीं होता है। पूस की रातों में खेत की रक्षा अपेक्षित हो जाती है। वह ईख के पत्तों का एक छप्पर बनाता है और चादर ओढ़कर भयानक जाड़े का सामना करता है। हल्कू के हृदय में दया का स्त्रोत उमड़ता है।

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पूस की रात कहानी का नायक आर्थिक विषमताओं का शिकार ग्रामीण किसान हल्कू है जो यथा-सामर्थ्य कृषि कर्म करने के उपरांत भी ऋण और दीनता से मुक्ति नहीं पाता है। प्रचंड सूर्य को झुलसने वाली किरणों, मूसलाधार वृष्टि के आघातों तथा हाड़ कंपा देने वाली सर्दी को सहन करते हुए प्रात:काल से सायंकाल तक अपने खेतों में काम करता है किंतु भरपेट भोजन उसे कभी प्राप्त नहीं होता है। पूस की रातों में खेत की रक्षा अपेक्षित हो जाती है। वह ईख के पत्तों का एक छप्पर बनाता है और चादर ओढ़कर भयानक जाड़े का सामना करता है। हल्कू के हृदय में दया का स्त्रोत उमड़ता है। भारत की जलवायु में काफ़ी क्षेत्रीय विविधता पायी जाती है! इसमें हिमालय पर्वत और इसके उत्तर में तिब्बत के पठार की स्थिति, थार का मरुस्थल और भारत की हिन्द महासागर के उत्तरी शीर्ष पर अवस्थिति महत्वपूर्ण हैं। हिमालय श्रेणियाँ और हिंदुकुश मिलकर भारत और पाकिस्तान के क्षेत्रों की उत्तर से आने वाली ठंडी कटाबैटिक पवनों से रक्षा करते हैं। भारतीय जलवायु में वर्ष में 4 ऋतुएँ होती हैं: जाड़ा, गर्मी, बरसात और शरदकाल। समुद्र तटीय भागों में तापमान में वर्ष भर समानता रहती है लेकिन उत्तरी मैदानों और थार के मरुस्थल में तापमान की वार्षिक रेंज काफ़ी ज्यादा होती है। पूर्वोत्तर में ही मौसिनराम विश्व का सबसे अधिक वार्षिक वर्षा पाती है। पूरब से पश्चिम की ओर क्रमशः वर्षा की मात्रा घटती जाती है और थार के मरुस्थलीय भाग में काफ़ी कम वर्षा दर्ज की जाती है। तापमान से तात्पर्य वायु में निहित ऊष्मा की मात्रा से है और इसी के कारण मौसम (ठंडा या गर्म) महसूस होता है। वायुमंडल का तापमान न सिर्फ दिन और रात में बदलता है बल्कि एक मौसम से दूसरे मौसम में भी बदल जाता है। सूर्यातप सूर्य से किरणों के रूप में पृथ्वी पर आने वाली सौर ऊर्जा है जो पृथ्वी के तापमान के वितरण को प्रभावित करता है क्योंकि सूर्यातप की मात्रा भूमध्य रेखा से ध्रुवों की तरफ कम होती जाती है। समुद्र स्तर पर वायुदाब सबसे अधिक होता है और उंचाई के साथ इसमें कमी आती जाती है। निम्नदाब वाले क्षेत्रों में बादलों का निर्माण होता है और वर्षा आदि होती है। उच्च वायुदाब वाले क्षेत्र वे हैं जहां तापमान कम होता है और हवा ठंडी होकर नीचे की ओर बैठने लगती है।

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मिलियन

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पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय तथा राष्ट्रीय
एटलस और थिमैटिक मानचित्रण

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पृथ्वी शुरू में आग की गोली थी जो समय के साथ ठंडी हुई जिसे प्रकृति का निर्माण हुआ। इस से कई जगहों पर टूट-फूट और उथल-पुथल के परिणाम स्वरूप चट्टानों का निर्माण हुआ। भूगर्भ में खनिज पाए जाते हैं लेकिन कुछ मुख्य तत्व ऐसे हैं जो चट्टान बनाने में उपयोगी होते हैं। रूपांतरित शैल क्या हैं? ये एक ऐसी प्रक्रिया है जो चट्टानें दबाव, आयतन और तापमान परिवर्तनों की क्रिया के तहत बनती हैं!

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भारत में भूवैज्ञानिक जांच की शुरुआत उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दौर में हुई थी। भारत और सेना के सर्वेक्षण से जुड़े कुछ शौकिया भूवैज्ञानिकों ने देश में भूवैज्ञानिक अध्ययन शुरू किया। H. W. ग्रेट त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण के वायसी (१८१८-१८२३) ने विस्तृत रिपोर्ट के साथ हैदराबाद क्षेत्र का पहला भूवैज्ञानिक मानचित्र बनाया। १८३७ में “कोयला और खनिज संसाधनों की जांच” के लिए एक समिति की स्थापना की गई थी। महाराजपुरम सीतारामन कृष्णन भूगर्भविज्ञान के क्षेत्र में अपनी अमूल्य योगदान से पहचान बना चुके हैं। वह भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के निदेशक के रूप में सेवा करने वाले पहले भारतीय थे। ऑनर्स की डिग्री प्राप्त करने के बाद दो साल तक, डॉ. कृष्णन प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास में भूविज्ञान में प्रदर्शक के रूप में कार्यरत रहे। उन्हें भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण में वरिष्ठ सेवा में सहायक अधीक्षक (भूविज्ञानी) के रूप में नियुक्त किया गया और दिसंबर 1924 में विभाग में शामिल हुए। डॉ. कृष्णन ने लुईस फ़र्मोर, C. S. फॉक्स, J. A. डन, अलेक्जेंडर M. हेरॉन, H. C. जोन्स और J. B. ऑडेन के साथ काम किया।

Medium
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मैग्नेशियम एक रासायनिक तत्त्व है, जिसका चिह्न है Mg, परमाणु संख्या १२ एवं सामान्य ऑक्सीडेशन संख्या +२ है। यह कैल्शियम और बेरियम की तरह एक एल्केलाइन अर्थ धातु है एवं पृथ्वी पर आठवाँ बहुल उपलब्ध तत्त्व है तथा भार के अनुपात में २% है और पूरे ब्रह्माण्ड में नौंवा बहुल तत्त्व है। इसकी अधिकता से अतिसार और न्यूनता से न्यूरोमस्कुलर समस्याएं हो सकती है। मैग्नीशियम हरी पत्तेदार सब्जियों में पाया जाता है। हालांकि मैग्नीशियम ६० से अधिक खनिजों में पाया जाता है, किन्तु केवल डोलोमाइट, ब्रूसाइट, कार्नेलाइट, टैल्क, एवं ओलिवाइन में ही वाणिज्यिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। मैग्नीशियम के एक्स्ट्रैक्शन हेतु सागरीय जल में कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड मिला देते हैं, जिससे मैग्नीशियम हाईड्रॉक्साइड प्रेसिपिटेट प्राप्त होता है। [MgCl + Ca(OH) → Mg(OH)+ CaCl]. ➀ मृदा शैलों से प्राप्त होती है। मृदा से मानव के लिये भोजन मिलता है, इसके साथ ही विभिन्न कृषि उत्पादों से उद्योग-धंधों के लिए कच्चा माल भी प्राप्त होता है। ➁ भवन निर्माणकारी सामग्री शैलों से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्राप्त होती है। शैलें ही सभी प्रकार के भवनों की सामग्री का एकमात्रा स्रोत है। दिल्ली का लाल किला लाल-बलुआ पत्थर तथा आगरा का ताजमहल सफेद संगमरमर से बना है। ➂ उवर्रक भी शैलों से प्राप्त किये जाते हैं। फास्फेट उर्वरक फास्फेराइट नामक खनिज से मिलता है। संसार के कुछ भागों में फास्फेराइट खनिज अधिक मात्रा में पाया जाता है। ➃ कई शैलों और खनिजों का उपयोग विभिन्न प्रकार के उद्योगों के लिए कच्चे माल के रूप में होता है। मोती या ‘मुक्ता’ एक कठोर पदार्थ है जो मुलायम ऊतकों वाले जीवों द्वारा पैदा किया जता है। रासायनिक रूप से मोती सूक्ष्म क्रिटलीय रूप में कैल्सियम कार्बोनेट है जो जीवों द्वारा संकेन्द्रीय स्तरों में निक्षेप (डिपॉजिट) करके बनाया जाता है। सबसे मूल्यवान मोती जंगल में खुद-ब-खुद ही उत्पन्न होते हैं लेकिन यह अत्यंत दुर्लभ होते हैं। इन जंगली मोतियों को प्राकृतिक मोती कहा जाता है। मोती सीप और मीठे पानी के शंबुक से संवर्धित या फार्मी मोती ही वर्तमान में सबसे अधिक बेचे जाते हैं। खेती शुरू करने के लिए किसान को पहले तालाब, नदी आदि से सीपों को इकट्ठा करना होता है या फिर इन्हे खरीदा भी जा सकता है। सीपों से नदीं और तालाबों के जल का शुद्धिकरण भी होता रहता है जिससे जल प्रदूषण की समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है। उन्हें कुचला भी गया है और उनका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन, दवाओं और पेंट फॉर्मूलेशन में भी किया गया है।

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ऊर्जा संसाधन: कोयला, पेट्रोलियम
और प्राकृतिक गैस के प्रमुख प्रभाव

Regular
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लुप्तप्राय प्रजातियां, ऐसे जीवों की आबादी है, जिनके लुप्त होने का जोखिम है, क्योंकि वे या तो संख्या में कम है, या बदलते पर्यावरण या परभक्षण मानकों द्वारा संकट में हैं। साथ ही, यह वनों की कटाई के कारण भोजन और/या पानी की कमी को भी द्योतित कर सकता है।

Sharp Earth Case Study
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Regular
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इन प्रजातियों के बारे में अधिक जानने की खोज के मामले में भी, कई परिस्थिति-विज्ञानी, पर्यावरण और निवासियों पर उनके प्रभाव पर विचार नहीं करते हैं। यह स्पष्ट है कि “पारिस्थितिकी ज्ञान का अन्वेषण, जो मूल्यवान पारिस्थितिकी तंत्र की संपत्ति और सेवाओं के साथ-साथ पृथ्वी की जैव विविधता के संरक्षण के बारे में समझने के प्रयासों के सूचनार्थ बहुत महत्वपूर्ण है, अक्सर जटिल नैतिक सवाल उठाता है,” और इन मुद्दों को सुलझाने के लिए कोई स्पष्ट रास्ता नहीं है। विशिष्ट प्रजातियां लुप्तप्राय हैं या नहीं यह निर्धारित करने के मूलरूप से ४ तरीके हैं। ➁ ५० से कम वयस्क प्रजाति की बहुत सीमित या छोटी आबादी। ➀ जब प्रजातियों की एक सीमित भौगोलिक सीमा होती है।➃ अगर प्रजाति की आबादी २५० से कम है और पिछली एक पीढ़ी या तीन साल के लिए लगातार २५% कम हो रही है। दुनिया की विलुप्त होने जा रही प्रजातियों के संरक्षण में कई तरीक़ों से सहायता की जा सकती है। ➂ क्या पिछली तीन पीढ़ियों या १० वर्षों के लिए आबादी में ८०% से अधिक की कमी आई या कमी होगी। इनमें एक तरीक़ा है, प्रजातियों के विभिन्न समूहों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना।

Regular
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बंदी प्रजनन, वन्य-जीव परिरक्षित क्षेत्रों, चिड़ियाघरों और अन्य संरक्षण सुविधा स्थलों जैसे प्रतिबंधित मानव नियंत्रित वातावरण में दुर्लभ या लुप्तप्राय प्रजातियों के प्रजनन की प्रक्रिया है। इससे अपेक्षा की जाती है कि प्रजाति की आबादी स्थिर हो, ताकि वह लुप्त के लिए ख़तरे से बच सके। कुछ समय के लिए इस तकनीक का सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया, संभवतः प्राचीनतम ज्ञात बंदी संभोग के ऐसे उदाहरणों के लिए यूरोपीय और एशियाई शासकों की व्यवस्था को श्रेय दिया जा सकता है। आम तौर पर कुछ प्रवासी पक्षियों (उदा. सारस) और मछलियों (उदा. हिल्सा) जैसी अत्यंत गतिशील प्रजातियों के लिए लागू करना मुश्किल होता है। इसके अतिरिक्त, यदि बंदी प्रजनन की आबादी बहुत कम है, तो न्यून जीन पूल के कारण अंतःप्रजनन हो सकता है; तितीष्ठती सार्वभौमिक बाइओडाइवर्सिटी में एक महत्वपूर्ण गोष्ठीत और आपदी जानवर, सुमात्राई रिनो, वर्तमान में अत्यंत संकटापन्न है। इसका सर्वांगीण विकासशीलता विरुद्ध रोकने में हमारी उच्चतम जिम्मेदारी है। इस स्पीषीज की संरक्षण की आवश्यकता ने एक गंभीर सामाजिक, आर्थिक, और पारिस्थितिक परिस्थिति बना दी है। सुमात्राई रिनो की तंत्रज्ञानिक, जैव आपदा और स्वास्थ्य विज्ञान में विशेषज्ञता वाले विश्व स्तरीय वैज्ञानिकों के सहयोग की आवश्यकता है, ताकि हम इस नेतृत्वहीन जानवर को संरक्षित कर सकें और आपदा से मुक्ति प्राप्त कर सकें। सुमात्राई रिनो के संरक्षण में सफलता प्राप्त करने के लिए, हमें आपसी सहयोग, जन जागरूकता, और स्थानीय समुदायों को समाहित करने की आवश्यकता है। मौजूदा प्रजातियों पर मानव प्रभाव का एक अंतिम उदाहरण, पर्यावरण अनुसंधान में पैर के अंगूठे के कतरन का मुद्दा है। परिस्थिति-विज्ञानी जहां संरक्षण के तरीक़ों के प्रति अपने ज्ञान को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रजातियों पर शोध कर रहे हैं, वहीं इसके कारण जिन वन्य-जीवों का वे अध्ययन कर रहे हैं, उन पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी विचार किया जाना चाहिए। पैर की अंगुली की कतरन के बारे में “रिपोर्ट किया गया है कि परिणामस्वरूप पाद और अंगों में सूजन तथा संक्रमण सहित पशुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है” (मिन्टीर एंड कॉलिन्स, २००५)।यह उदाहरण दर्शाता है कि प्रजाति के संरक्षण में सहायतार्थ अनुसंधान से पूर्व कैसे लोगों को पशुओं की भलाई के बारे में भी विचार करना चाहिए। प्रजातियों और उनके परिवेश पर मानवीय प्रभाव का बहुत ही नकारात्मक असर पड़ता है। लोगों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि दुनिया में सभी प्रजातियों के अनुरक्षण और उनके विकास को बाधित ना करने में मदद करें। इसके लिए हमें समृद्धि, सामरिक न्याय, और पर्यावरणीय सामरिकता के माध्यम से संरक्षण कर सकें।

Mixed Styles

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मानचित्र निर्माण की विद्या अति प्राचीन है। अन्य विषयों के शोध कार्यों से संबंधित तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन भारतीयों ने मानचित्र कला में पर्याप्त उन्नति की थी। बेबिलोनिया से प्राप्त एक मृत्तिका पट्टिका पर अंकित पर्वतसंकुल घाटी का चित्र २३०० ई. पू. का बताया जाता है।

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ईला की आंतरक संरचना का तुलना
प्याज के भीतेर से की जा सकती है।

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रूपांतरित और अवसादी चट्टानों की Lithosphere Crust & Mantle

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त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण और देशांतरों की शुद्ध माप के १८वीं सदी में संभव हो जाने पर मानचित्रों का शुद्धिकरण एवं सेशोधन युग प्रारंभ हुआ। मानचित्रकला ड्राइंग तकनीकों के संग्रह से एक वास्तविक विज्ञान तक विकसित हुई। फ्रांस, अमरीका एवं सोवियत रूस ने राष्ट्रीय ऐटलस निर्माण की पद्धति प्रारंभ की, जिसमें राष्ट्र के बारे में शोधपूर्ण संसाधन तथ्यों का आलेख रहता है। जनसंख्या वितरण के कुछ प्रत्रक भी प्रकाशित हो गए हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में आबादी के विविधता और प्रवृत्तियों को प्रस्तुत करते हैं। जेरार्डस मर्केटर (५ मार्च १५१२ - २ दिसंबर १५९४) एक फ्लेमिश भूगोलवेत्ता, ब्रह्मांड विज्ञानी और मानचित्रकार थे। वह एक नए प्रक्षेपण के आधार पर १५६९ विश्व मानचित्र बनाने के लिए सबसे प्रसिद्ध हैं, जो निरंतर असर (रम्ब लाइन) के नौकायन पाठ्यक्रमों को सीधी रेखाओं के रूप में दर्शाता है - एक नवाचार जो अभी भी समुद्री चार्ट में कार्यरत है। मर्केटर ग्लोब और वैज्ञानिक उपकरणों का एक उल्लेखनीय निर्माता था। इसके अलावा, उनकी धर्मशास्त्र, दर्शन, इतिहास, गणित और भू-चुंबकत्व में रुचि थी। प्लांटिन प्रेस के रिकॉर्ड से पता चलता है कि १६वीं शताब्दी के अंत से पहले ग्लोब के कई सौ सेट बेचे गए थे।

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नक्शा खींचना (Map Drawing) मनुष्य को उसकी भौमिक परिस्थितियों से साक्षात्कार कराने का सबसे सरल माध्यम है। भूपृष्ठ पर स्थित प्राकृतिक विवरण, जैसे पहाड़, नदी पठार, मैदान, जंगल आदि और सांस्कृतिक निर्माण, जैसे सड़कें, रेलमार्ग, पुल, कुएँ धार्मिक स्थान, कारखाने आदि का सक्षिप्त, सही और विश्वसनीय चित्रण नक्शे पर मिलता है। नक्शे की इस व्याख्या से तीन प्रश्न उठ खड़े होते हैं : (१) ऐसे विशाल और विस्तृत भूपृष्ठ का छोटे कागज पर कैसे प्रदर्शन हो? (२) गोल भूपृष्ठ को बिना विकृति के समतल पर कैसे चित्रित किया जाए? (३) भूपृष्ठ की अधिकांश प्राकृतिक और कृत्रिम वस्तुएँ त्रिविमितीय होती हैं, अत: उनका समतल पर कैसे ज्ञान कराया जाए? कार्यक्षेत्र में किए गए सर्वेक्षण के पटलचित्र, या पटलचित्रों, या हवाई सर्वेक्षणों का ब्लू प्रिंट मोटे कागज पर से बनाया जाता है। समक्षेत्रफल प्रक्षेप : इन प्रक्षेपों के रेखाजाल पर बने हुए अक्षांश देशांतरीय चतुर्भुज का क्षेत्रफल ग्लोब पर प्रदर्शित होनेवाले संगति चतुर्भुज के क्षेत्रफल से मापकानुपात में समान होता है किंतु इन प्रक्षेपों के रेखाजाल पर खींचे हुए मानचित्रों की आकृति भंग हो जाती है। यथाकृतिक प्रक्षेप : इन प्रक्षेपों पर खींचे मानचित्रों की आकृति शुद्ध होती है। आकृति को शुद्ध रखने के हेतु (अ) अक्षांश और देशांतर रेखाओं का परस्पर लंबवत्‌ होना आवश्यक है और (ब) किसी भी एक बिंदु पर मापक समस्त दिशाओं में समान होता है। परंतु मापक एक बिंदु से दूसरे बिंदु पर भिन्न हो जाता है। वास्तव में पूर्ण रूप से आकृति शुद्ध रखना संभव नहीं है। केवल लघु क्षेत्रों में ही आकृति लगभग ठीक रह सकती है। विशेषकर बिंदुओं पर ही पूर्ण रूपेण आकृति शुद्ध रहती है। मानचित्र भूतल पर स्थित किसी वास्तविक तथ्य को नहीं प्रदर्शित करते हैं (केवल चिह्नविशेष द्वारा) कागज या अन्य तल पर पृथ्वी के संगत बिंदू की स्थिति दिखाते हैं। इस सत्य का ज्ञान न होने से भ्रांति उत्पन्न होती है। मानचित्र समतल होते हैं (परंतु पृथ्वी या अन्य ग्रह उपग्रह, या उसका कोई भाग, गोलक अर्थात्‌ गोले का भाग होता है), पर गोलक को समतल पर ठीक ठीक नहीं प्रकट किया जा सकता, अत: इस चेष्टा में मानचित्र के विभिन्न भागों में आकृति की विकृति होती है। प्रक्षेप के द्वारा विभिन्न प्रकार से अक्षांश एवं देशांतर रेखाओं का जाल तैयार कर मानचित्र बनाया जाता है (देखें प्रक्षेप)। अत: मानचित्र के पठन के लिये पृथ्वी के विभिन्न भागों की मानचित्र पर उतारी हुई सापेक्षिक स्थिति, दिशा, दूरी तथा विस्तार आदि का ज्ञान होना आवश्यक है। मानचित्र अनेक प्रकार के होते है और उन्हें हम कई प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं — साधारण मानचित्र और विशिष्ट विषयात्मक मानचित्र। साधारण मानचित्र में मानचित्र क्षेत्र की सभी साधारण प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक स्थितियों का समावेश रहता है, जैसे पर्वत, नदी, प्रशासनिक विभाग, नगर, परिवहन के साधन आदि। विशिष्ट विषयात्मक मानचित्रों में उद्देश्य विशेष से कुछ निश्चित प्रकार के तथ्यों का समावेश रहता है।

Sharp Earth Case Study
Mixed Styles

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हिमालय के महाधरों में पाए विभिन्न
प्रकार के पशु-पक्षी बहुत रुचिकर हैं

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वह प्रक्रिया जिसमे एक भारी नाभिक दो लगभग बराबर नाभिकों में टूट जाता हैं विखण्डन कहलाता हैं। इसी अभिक्रिया के आधार पर बहुत से परमाणु रिएक्टर या परमाणु भट्ठियाँ बनायी गयीं हैं जो विद्युत उर्जा का उत्पादन करतीं हैं। विखण्डन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो एक अहम भूमिका निभाती है।

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नाइट्रोजन और ऑक्सीजन की मात्रा The Dawn of Natural History

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हाइड्रोजन सल्फाइड (HS) एक अकार्बनिक यौगिक है। यह रंगहीन गैस है जिससे सडे अण्डे जैसी दुर्गंध आती है। यह वायु मे नीली ज्वाला के साथ जलता है। यह दुर्बल अम्ल है। यह अपचायक होने के कारण हैलोजन को हाइड्रोअम्ल मे अपचयित करता है। यह लेड एसीटेट पेपर को काला कर देता है। यह सोडियम नाइट्रोप्रुसाइड विलयन के साथ बैंगनी रंग देता है। यह हवा से भारी है, बहुत विषैली, ज्वलनशील, विस्फोटक और संक्षारक (कोरोसिव) है। पृथ्वी का क्षोभमंडल पृथ्वी की सतह से औसतन लगभग १२ किलोमीटर ऊँचाई तक फैला हुआ है, जिसकी ऊँचाई पृथ्वी के ध्रुवों पर कम और भूमध्य रेखा पर अधिक है। फिर भी प्रकाश संश्लेषण एवं जानवरों को सांस लेने के लिये आवश्यक वायु इसी परत में उपलब्ध है साथ ही, इसमें लगभग 99% जल वाष्प और एरोसोल भी शामिल हैं। इसकी ऊपरी परत, जिसमें यह परिघटना होती है, ट्रोपोपॉज़ कहा जाता है। पृथ्वी का अधिकांश मौसमी घटनाएँ यहीं होती है, एवं अलग-अलग मौसम से उत्पन्न होने वाले लगभग सभी प्रकार के बादल यहाँ पाए जाते हैं। अधिकांश विमानन यहाँ होता है, जिसमें क्षोभमंडल और समताप मंडल भी शामिल है।

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डॉ. सी. एन. आर. राव एक अद्वितीय भारतीय रासायनिक वैज्ञानिक हैं जिनका योगदान रासायनिक विज्ञान में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उनकी ‘ठोस-राज्य’ और ‘संरचनात्मक रसायन’ क्षेत्र में की गई प्रमुख अनुसंधान ने नई सोच और नए सिद्धांतों का संजीवनी प्रदान किया है। वे ‘नैनोसामग्री,’ ‘सुपरकंडक्टिविटी,’ और ‘कैटलिसिस’ जैसे विषयों में कार्य कर चुके हैं जो रासायनिक विज्ञान के क्षेत्र में नए दरबार को खोलते हैं। उनके अनुसंधान में ‘सृजनात्मकता’ और ‘वैज्ञानिक तर्कशीलता’ का सफल संगम है, जिसने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में मानव ज्ञान के क्षेत्र में एक प्रमुख स्थान पर पहुंचाया है। उनके वैज्ञानिक अद्भुतियों ने भारत को विश्व स्तर पर ऊँचाईयों तक पहुंचाया है और उन्हें एक अद्वितीय योगदानकर्ता के रूप में माना जाता है। लवणों का उपयोग चरक काल से भी पुराना है। सुश्रुत में कॉस्टिक, या तीक्ष्ण क्षारों, को सुधाशर्करा (चूने के पत्थर) के योग से तैयार करने का उल्लेख है। इससे पुराना उल्लेख अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है। मयर तुत्थ (तूतिया), कसीस, लोहकिट्ट, सौवर्चल (शोरा), टंकण (सुहागा), रसक, दरद, शिलासीत, गैरिक और बाद को गंधक, के प्रयेग से रसशास्त्र में एक नए युग को जन्म दिया। नागार्जुन पारद-गंधक-युग का सबसे महान्‌ रसवेत्ता है। रसरत्नाकर और रसार्णव ग्रंथ उसकी परंपरा के मुख्य ग्रंथ हैं। इस समय अनेक प्रकार की मूषाएँ, अनेकप्रकार के पातन यंत्र, स्वेदनी यंत्र, बालुकायंत्र, कोष्ठी यंत्र और पारद के अनेक संस्कारों का उपयोग प्रारम्भ हो गया था। आसव, कांजी, अम्ल, अवलेह, आदि ने रसशास्त्र में योग दिया। पंद्रहवीं-सोलहवीं शती तक यूरोप और भारत दोनों में एक ही पद्धति पर रसायन शास्त्र का विकास हुआ। सभी देशों डॉ. सी. एन. आर. राव एक अद्वितीय भारतीय रासायनिक वैज्ञानिक हैं जिनका योगदान रासायनिक विज्ञान में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उनकी ‘ठोस-राज्य’ और ‘संरचनात्मक रसायन’ क्षेत्र में की गई प्रमुख अनुसंधान ने नई सोच और नए सिद्धांतों का संजीवनी प्रदान किया है। वे ‘नैनोसामग्री,’ ‘सुपरकंडक्टिविटी,’ और ‘कैटलिसिस’ जैसे विषयों में कार्य कर चुके हैं जो रासायनिक विज्ञान के क्षेत्र में नए दरबार को खोलते हैं। उनके अनुसंधान में ‘सृजनात्मकता’ और ‘वैज्ञानिक तर्कशीलता’ का सफल संगम है, जिसने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में मानव ज्ञान के क्षेत्र में एक प्रमुख स्थान पर पहुंचाया है। उनके वैज्ञानिक अद्भुतियों ने भारत को विश्व स्तर पर ऊँचाईयों तक पहुंचाया है और उन्हें एक अद्वितीय योगदानकर्ता के रूप में माना जाता है। लवणों का उपयोग चरक काल से भी पुराना है। सुश्रुत में कॉस्टिक, या तीक्ष्ण क्षारों, को सुधाशर्करा (चूने के पत्थर) के योग से तैयार करने का उल्लेख है। इससे पुराना उल्लेख अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है। मयर तुत्थ (तूतिया), कसीस, लोहकिट्ट, सौवर्चल (शोरा), टंकण (सुहागा), रसक, दरद, शिलासीत, गैरिक और बाद को गंधक, के प्रयेग से रसशास्त्र में एक नए युग को जन्म दिया। नागार्जुन पारद-गंधक-युग का सबसे महान्‌ रसवेत्ता है। रसरत्नाकर और रसार्णव ग्रंथ उसकी परंपरा के मुख्य ग्रंथ हैं। इस समय अनेक प्रकार की मूषाएँ, अनेकप्रकार के पातन यंत्र, स्वेदनी यंत्र, बालुकायंत्र, कोष्ठी यंत्र और पारद के अनेक संस्कारों का उपयोग प्रारम्भ हो गया था। आसव, कांजी, अम्ल, अवलेह, आदि ने रसशास्त्र में योग दिया। पंद्रहवीं-सोलहवीं शती तक यूरोप और भारत दोनों में एक ही पद्धति पर रसायन शास्त्र का विकास हुआ। सभी देशों

Sharp Earth enables disparate language groups -Latin, Arabic, Indic, Japanese, Greek, Thai, English and various indigenous languages - to appear graphically harmonious while remaining legible and true to their origins.

Sharp Earth

Sharp Earth is a love letter to this planet and all the people on it. Το Sharp Earth είναι ένα γράμμα αγάπης για αυτόν τον πλανήτη και όλους τους ανθρώπους σε αυτόν. Sharp Earth — це любовний лист до цієї планети та всіх людей на ній. Sharp Earth คือจดหมายรักสำหรับโลกใบนี้และผู้คนทุกคนบนโลกใบนี้. إن Sharp Earth هي رسالة حب إلى هذا الكوكب وجميع الأشخاص الذين يعيشون عليه. शार्प अर्थ इस ग्रह और इस पर रहने वाले सभी लोगों के लिए एक प्रेम पत्र है. Sharp Earth は、この地球とそこに住むすべての人々へのラブレターです。

Sharp Earth
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From crater counts on other celestial bodies, it is inferred that a period of intense meteorite impacts, called the Late Heavy Bombardment, began about 4.1 Ga, and concluded around 3.8 Ga, at the end of the Hadean. In addition, volcanism was severe due to the large heat flow and geothermal gradient. Nevertheless, detrital zircon crystals dated to 4.4 Ga show evidence of having undergone contact with liquid water, suggesting that the Earth already had oceans or seas at that time.By the beginning of the Archean, the Earth had cooled significantly. From crater counts on other celestial bodies, it is inferred that a period of intense meteorite impacts, called the Late Heavy Bombardment, began about 4.1 Ga, and concluded around 3.8 Ga, at the end of the Hadean. In addition, volcanism was severe due to the large heat flow and geothermal gradient. Nevertheless, detrital zircon crystals dated to 4.4 Ga show evidence of having undergone contact with liquid water, suggesting that the Earth already had oceans or seas at that time.By the beginning of the Archean, the Earth had cooled significantly. Present

Sharp Earth
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Z liczby kraterów na innych ciałach niebieskich wnioskuje się, że okres intensywnych uderzeń meteorytów, zwany późnym ciężkim bombardowaniem, rozpoczął się około 4,1 Ga i zakończył około 3,8 Ga na końcu Hadeanu. Ponadto wulkanizm był poważny ze względu na duży przepływ ciepła i gradient geotermalny. Niemniej jednak detrytyczne kryształy cyrkonu datowane na 4,4 Ga wykazują dowody na kontakt z ciekłą wodą, co sugeruje, że na Ziemi istniały już wówczas oceany lub morza. Na początku archaiku Ziemia znacznie się ochłodziła. Z liczby kraterów na innych ciałach niebieskich wnioskuje się, że okres intensywnych uderzeń meteorytów, zwany późnym ciężkim bombardowaniem, rozpoczął się około 4,1 Ga i zakończył około 3,8 Ga na końcu Hadeanu. Ponadto wulkanizm był poważny ze względu na duży przepływ ciepła i gradient geotermalny. Niemniej jednak detrytyczne kryształy cyrkonu datowane na 4,4 Ga wykazują dowody na kontakt z ciekłą wodą, co sugeruje, że na Ziemi istniały już wówczas oceany lub morza. Na początku archaiku Ziemia znacznie się ochłodziła. Obecny

Sharp Earth Pan Euro
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На основании подсчета кратеров на других небесных телах можно сделать вывод, что период интенсивных ударов метеоритов, названный Поздней тяжелой бомбардировкой, начался около 4,1 млрд лет назад и завершился около 3,8 млрд лет назад, в конце Гадея. Кроме того, вулканизм был сильным из-за большого теплового потока и геотермического градиента. Тем не менее, обломочные кристаллы циркона, датированные 4,4 млрд лет, свидетельствуют о контакте с жидкой водой, что позволяет предположить, что на Земле в то время уже были океаны или моря. К началу архея Земля значительно остыла. На основании подсчета кратеров на других небесных телах можно сделать вывод, что период интенсивных ударов метеоритов, названный Поздней тяжелой бомбардировкой, начался около 4,1 млрд лет назад и завершился около 3,8 млрд лет назад, в конце Гадея. Кроме того, вулканизм был сильным из-за большого теплового потока и геотермического градиента. Тем не менее, обломочные кристаллы циркона, датированные 4,4 млрд лет, свидетельствуют о контакте с жидкой водой, что позволяет предположить, что на Земле в то время уже были океаны или моря. К началу архея Земля значительно остыла.

Sharp Earth Pan Euro
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Από τις μετρήσεις κρατήρων σε άλλα ουράνια σώματα, συνάγεται ότι μια περίοδος έντονων κρούσεων μετεωριτών, που ονομάζεται Ύστερος Βαρύς Βομβαρδισμός, ξεκίνησε περίπου στα 4,1 Ga και ολοκληρώθηκε γύρω στα 3,8 Ga, στο τέλος του Αδαίου. Επιπλέον, ο ηφαιστειασμός ήταν σοβαρός λόγω της μεγάλης ροής θερμότητας και της γεωθερμικής κλίσης. Παρόλα αυτά, κρύσταλλοι ζιρκονίου που χρονολογούνται στο 4,4 Ga δείχνουν στοιχεία επαφής με υγρό νερό, υποδηλώνοντας ότι η Γη είχε ήδη ωκεανούς ή θάλασσες εκείνη την εποχή. Από την αρχή του Αρχαίου, η Γη είχε κρυώσει σημαντικά. Από τις μετρήσεις κρατήρων σε άλλα ουράνια σώματα, συνάγεται ότι μια περίοδος έντονων κρούσεων μετεωριτών, που ονομάζεται Ύστερος Βαρύς Βομβαρδισμός, ξεκίνησε περίπου στα 4,1 Ga και ολοκληρώθηκε γύρω στα 3,8 Ga, στο τέλος του Αδαίου. Επιπλέον, ο ηφαιστειασμός ήταν σοβαρός λόγω της μεγάλης ροής θερμότητας και της γεωθερμικής κλίσης. Παρόλα αυτά, κρύσταλλοι ζιρκονίου που χρονολογούνται στο 4,4 Ga δείχνουν στοιχεία επαφής με υγρό νερό, υποδηλώνοντας ότι η Γη είχε ήδη ωκεανούς ή θάλασσες εκείνη την εποχή. Από την αρχή του Αρχαίου, η Γη είχε κρυώσει σημαντικά. Παρόν

Sharp Earth Thai
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จากการนับปล่องภูเขาไฟบนเทห์ฟากฟ้าอื่นๆ สรุปได้ว่าช่วงที่อุกกาบาตพุ่งชนอย่างรุนแรง เรียกว่า การทิ้งระเบิดหนักตอนปลาย (Late Heavy Bombardment) เริ่มต้นประมาณ 4.1 Ga และสรุปที่ประมาณ 3.8 Ga ที่ปลายสุดของฮาเดียน นอกจากนี้ ภูเขาไฟยังมีความรุนแรงเนื่องจากมีความร้อนไหลเข้ามามากและการไล่ระดับความร้อนใต้พิภพ อย่างไรก็ตาม ผลึกเพทายที่เสียหายซึ่งมีอายุถึง 4.4 Ga แสดงหลักฐานของการสัมผัสกับน้ำของเหลว ซึ่งบ่งบอกว่าโลกมีมหาสมุทรหรือทะเลอยู่แล้วในขณะนั้น เมื่อถึงจุดเริ่มต้นของ Archean โลกก็เย็นลงอย่างเห็นได้ชัด ปัจจุบัน จากการนับปล่องภูเขาไฟบนเทห์ฟากฟ้าอื่นๆ สรุปได้ว่าช่วงที่อุกกาบาตพุ่งชนอย่างรุนแรง เรียกว่า การทิ้งระเบิดหนักตอนปลาย (Late Heavy Bombardment) เริ่มต้นประมาณ 4.1 Ga และสรุปที่ประมาณ 3.8 Ga ที่ปลายสุดของฮาเดียน นอกจากนี้ ภูเขาไฟยังมีความรุนแรงเนื่องจากมีความร้อนไหลเข้ามามากและการไล่ระดับความร้อนใต้พิภพ อย่างไรก็ตาม ผลึกเพทายที่เสียหายซึ่งมีอายุถึง 4.4 Ga แสดงหลักฐานของการสัมผัสกับน้ำของเหลว ซึ่งบ่งบอกว่าโลกมีมหาสมุทรหรือทะเลอยู่แล้วในขณะนั้น เมื่อถึงจุดเริ่มต้นของ Archean โลกก็เย็นลงอย่างเห็นได้ชัด ปัจจุบัน

Sharp Earth Arabic
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من خلال تعداد الحفر على الأجرام السماوية الأخرى، يُستنتج أن فترة من التأثيرات النيزكية الشديدة، تسمى القصف الثقيل المتأخر، بدأت حوالي 4.1 مليار سنة، وانتهت حوالي 3.8 مليار سنة، في نهاية العصر الهادياني. بالإضافة إلى ذلك، كانت البراكين شديدة بسبب التدفق الحراري الكبير والتدرج الحراري الأرضي. ومع ذلك، فإن بلورات الزركون الفتاتية التي يرجع تاريخها إلى 4.4 مليار سنة تظهر دليلاً على تعرضها للتلامس مع الماء السائل، مما يشير إلى أن الأرض كانت تحتوي بالفعل على محيطات أو بحار في ذلك الوقت. وبحلول بداية العصر الأركي، كانت الأرض قد بردت بشكل ملحوظ. حاضر من خلال تعداد الحفر على الأجرام السماوية الأخرى، يُستنتج أن فترة من التأثيرات النيزكية الشديدة، تسمى القصف الثقيل المتأخر، بدأت حوالي 4.1 مليار سنة، وانتهت حوالي 3.8 مليار سنة، في نهاية العصر الهادياني. بالإضافة إلى ذلك، كانت البراكين شديدة بسبب التدفق الحراري الكبير والتدرج الحراري الأرضي. ومع ذلك، فإن بلورات الزركون الفتاتية التي يرجع تاريخها إلى 4.4 مليار سنة تظهر دليلاً على تعرضها للتلامس مع الماء السائل، مما يشير إلى أن الأرض كانت تحتوي بالفعل على محيطات أو بحار في ذلك الوقت. وبحلول بداية العصر الأركي، كانت الأرض قد بردت بشكل ملحوظ. حاضر

Sharp Earth Devanagari
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अन्य खगोलीय पिंडों पर क्रेटर गणना से, यह अनुमान लगाया जाता है कि तीव्र उल्कापिंड प्रभावों की अवधि, जिसे लेट हेवी बॉम्बार्डमेंट कहा जाता है, लगभग 4.1 Ga में शुरू हुई और हेडियन के अंत में 3.8 Ga के आसपास समाप्त हुई। इसके अलावा, बड़े ताप प्रवाह और भूतापीय प्रवणता के कारण ज्वालामुखी गंभीर था। फिर भी, 4.4 Ga के डेट्राइटल जिरकोन क्रिस्टल तरल पानी के संपर्क में आने का प्रमाण दिखाते हैं, जिससे पता चलता है कि उस समय पृथ्वी पर पहले से ही महासागर या समुद्र थे। आर्कियन की शुरुआत तक, पृथ्वी काफी हद तक ठंडी हो गई थी। उपस्थित अन्य खगोलीय पिंडों पर क्रेटर गणना से, यह अनुमान लगाया जाता है कि तीव्र उल्कापिंड प्रभावों की अवधि, जिसे लेट हेवी बॉम्बार्डमेंट कहा जाता है, लगभग 4.1 Ga में शुरू हुई और हेडियन के अंत में 3.8 Ga के आसपास समाप्त हुई। इसके अलावा, बड़े ताप प्रवाह और भूतापीय प्रवणता के कारण ज्वालामुखी गंभीर था। फिर भी, 4.4 Ga के डेट्राइटल जिरकोन क्रिस्टल तरल पानी के संपर्क में आने का प्रमाण दिखाते हैं, जिससे पता चलता है कि उस समय पृथ्वी पर पहले से ही महासागर या समुद्र थे। आर्कियन की शुरुआत तक, पृथ्वी काफी हद तक ठंडी हो गई थी। उपस्थित

Sharp Earth Japanese
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古代になり、文字で記録や歴史が残される時代になっても、星の研究はもっぱら肉眼で行われた。しかし文明が発達するとともに、バビロニア・中国・エジプト・ギリシア・インド・中央アメリカなどで天文台が建設され、宇宙の根元についての考察が発展を始めた。ほとんどの初期天文学は、恒星や惑星の位置を記す、現在では位置天文学と呼ばれるものだった。これらの観測から、惑星の挙動に対する最初のアイデアが形成され、宇宙における太陽・月そして地球の根源が哲学的に探求された。「地球は宇宙の中心にあり、太陽・月・星々が周囲を廻っている」と考えられた。この考え方は、クラウディオス・プトレマイオスから名を取って「プトレマイック・システム (Ptolemaic System)」と呼ばれる。

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